भगवान नारायण का पहला अवतार – मत्स्य अवतार की पूर्ण कथा
भगवान नारायण का पहला अवतार: मत्स्य अवतार की कथा
जब सृष्टि पर आया महासंहार का संकट, तब भगवान विष्णु ने लिया मछली का रूप और किया संपूर्ण जीवन की रक्षा।
परिचय: भगवान विष्णु के दशावतार में प्रथम अवतार
सनातन धर्म में भगवान नारायण (विष्णु) को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में जाना जाता है। जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है या सृष्टि संकट में पड़ती है, तब-तब भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं। उनके दस प्रमुख अवतारों को दशावतार कहा जाता है।
इनमें से पहला अवतार है मत्स्य अवतार – जहाँ भगवान ने मछली का रूप लेकर सृष्टि, वेदों और जीवन की रक्षा की।
मत्स्य अवतार क्यों लिया गया?
पुराणों के अनुसार, एक बार एक महाप्रलय (cosmic flood) आने वाला था, जिसमें सम्पूर्ण पृथ्वी डूबने वाली थी। उस समय पृथ्वी पर एक धर्मात्मा राजा थे – सत्यव्रत, जिन्हें आगे चलकर वैवस्वत मनु कहा गया।
राजा मनु सच्चे भक्त थे और गहन तपस्या कर रहे थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें संसार की रक्षा का कार्य सौंपने का निश्चय किया।
राजा मनु और छोटी मछली की रहस्यमयी भेंट
एक दिन जब राजा मनु नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उनके हाथों में एक छोटी मछली आ गई। जैसे ही उन्होंने उसे वापस जल में छोड़ने की कोशिश की, मछली बोल पड़ी:
“हे राजन! कृपया मुझे मत छोड़िए। नदी में बड़ी मछलियाँ मुझे खा जाएँगी। मेरी रक्षा कीजिए, मैं भविष्य में आपकी करूंगा।”
मनु को आश्चर्य हुआ लेकिन उन्होंने मछली को अपने जलपात्र में रख लिया। परंतु मछली तेजी से बड़ी होती चली गई — पहले जलपात्र, फिर तालाब, फिर नदी और अंत में समुद्र भी छोटा पड़ गया।
तब मछली ने अपना दिव्य रूप प्रकट किया और कहा:
“हे मनु! मैं स्वयं भगवान विष्णु हूँ। शीघ्र ही प्रलय आएगा। तुम एक विशाल नौका का निर्माण करो और उसमें सभी जीवों के बीज, सप्तऋषियों और वेदों को सुरक्षित स्थान दो।”
प्रलय और जीवन रक्षा की अद्भुत कथा
मनु ने भगवान के आदेशानुसार एक विशाल नाव बनाई। जब प्रलय प्रारंभ हुआ और पृथ्वी जलमग्न हो गई, तब मनु और सप्तऋषि नौका में सवार हो गए।
उसी समय भगवान विष्णु विशाल मत्स्य रूप में प्रकट हुए, जिनके सिर पर एक सींग था। मनु ने नौका को नाग वासुकी की रस्सी से भगवान के सींग से बाँध दिया। भगवान मत्स्य ने उन्हें समस्त जलराशि में सुरक्षित मार्ग प्रदान किया।
इस यात्रा के दौरान भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा भी की, जिन्हें राक्षस हयग्रीव ने चुरा लिया था। भगवान ने उन्हें हराया और वेदों को पुनः स्थापित किया।
मत्स्य अवतार का आध्यात्मिक संदेश
✅ ज्ञान की रक्षा: वेदों की रक्षा कर भगवान ने यह दर्शाया कि सत्य और ज्ञान की सदा रक्षा होती है।
✅ जीवन की पुनर्रचना: यह अवतार बताता है कि हर संहार के बाद सृष्टि का नवसृजन होता है।
✅ भक्ति का फल: राजा मनु की भक्ति के कारण उन्हें ईश्वर की शरण प्राप्त हुई।
✅ प्राकृतिक आपदा में ईश्वर का मार्गदर्शन: प्रलय जैसे संकट में भी भगवान की कृपा से जीवन संभव है।
निष्कर्ष: मत्स्य अवतार की कालजयी शिक्षा
भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार यह सिखाता है कि जब सच्चे धर्मात्मा संकट में होते हैं, तब भगवान स्वयं अवतरित होकर उनकी रक्षा करते हैं। यह अवतार मानवता, ज्ञान और जीवन के बीजों की रक्षा का प्रतीक है।
प्रलय का तात्पर्य केवल विनाश नहीं, बल्कि नई शुरुआत है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि ईश्वर हर युग में अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।
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