भगवान विष्णु का दूसरा अवतार – कूर्म अवतार की पौराणिक कथा
दूसरा अवतार: भगवान विष्णु का कूर्म अवतार
जब सृष्टि का अमृत समुद्र में छिपा था, तब भगवान ने कछुए का रूप लेकर देवताओं की सहायता की।
परिचय: कूर्म अवतार की आवश्यकता क्यों पड़ी?
सनातन धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों को दशावतार कहा गया है, जो अलग-अलग समयों में धर्म की रक्षा और सृष्टि के संतुलन के लिए हुए। दूसरा अवतार है – कूर्म अवतार यानी कछुए का रूप।
यह अवतार समुद्र मंथन की महाकथा से जुड़ा है, जहाँ देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीरसागर का मंथन किया था।
समुद्र मंथन: सृष्टि का अद्भुत प्रयोग
एक समय की बात है, जब देवताओं की शक्तियाँ क्षीण हो गईं और असुर बलशाली हो गए। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान ने सलाह दी कि यदि क्षीरसागर का मंथन किया जाए, तो उसमें से अमृत (अमरत्व का रस) निकलेगा, जिससे देवताओं को फिर से शक्ति प्राप्त होगी।
परंतु समुद्र को मथने के लिए एक मजबूत आधार और एक विशाल मथनी की आवश्यकता थी।
मथनी बनी – मंदार पर्वत
रस्सी बनी – वासुकी नाग
परंतु जैसे ही मंथन शुरू हुआ, भारी मंदार पर्वत समुद्र में डूबने लगा।
कूर्म अवतार का प्रकट होना
जब मंदार पर्वत समुद्र में डूबने लगा, तो भगवान विष्णु ने तुरंत कछुए (कूर्म) का रूप धारण किया।
उन्होंने विशाल आकार धारण कर समुद्र में प्रवेश किया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को संतुलित किया।
इस प्रकार समुद्र मंथन का कार्य सफलतापूर्वक आगे बढ़ सका।
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न
मंथन से चौदह दिव्य रत्न निकले, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- लक्ष्मी देवी (धन और सौंदर्य की देवी)
- ऐरावत (इंद्र का हाथी)
- उच्चैःश्रवा (स्वर्गीय घोड़ा)
- कामधेनु (इच्छापूर्ति करने वाली गाय)
- पारिजात (स्वर्ग का पुष्पवृक्ष)
- रम्भा (अप्सरा)
- अमृत (अमरत्व का रस)
जब अमृत निकला, असुरों ने उसे पाने का प्रयास किया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में आकर अमृत को देवताओं को पिला दिया।
कूर्म अवतार का प्रतीकात्मक अर्थ
🐢 स्थिरता और संतुलन: कूर्म अवतार दर्शाता है कि संसार के संतुलन हेतु स्थिरता और समर्थन आवश्यक है।
🔱 सहयोग और धैर्य: समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों दोनों ने मिलकर कार्य किया – यह सहयोग और संयम का प्रतीक है।
🌊 आध्यात्मिक मंथन: यह कथा बताती है कि आत्मा की गहराइयों से अमृत निकालने के लिए भीतर मंथन आवश्यक है।
निष्कर्ष: कूर्म अवतार से जीवन की सीख
भगवान विष्णु का कूर्म अवतार हमें सिखाता है कि जब कोई कार्य असंभव लगे, तब धैर्य, संतुलन और ईश्वर का सहारा उसे संभव बना सकता है। यह अवतार सृष्टि में छिपे अमृत (ज्ञान, शक्ति, मोक्ष) को प्राप्त करने की आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक भी है।
कूर्म अवतार हमें यह भी सिखाता है कि जब भी सृष्टि को सहारा देने की आवश्यकता होती है, ईश्वर नम्र और स्थिर रूप में भी प्रकट हो सकते हैं।
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