भगवान विष्णु का सातवां अवतार: श्रीराम का जन्म और बाल्यकाल

श्रीराम अवतार की पृष्ठभूमि और जन्म कथा


जानिए भगवान श्रीराम के जन्म की पवित्र कथा, उनके अवतरण का उद्देश्य, बाल्यकाल के प्रेरक प्रसंग और राक्षसों के अंत की शुरुआत।



 ✨ प्रस्तावना

त्रेतायुग में जब अधर्म बढ़ने लगा, राक्षसों का आतंक चरम पर पहुँच गया और पृथ्वी देवी स्वयं कष्ट में थीं, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने वचन दिया कि वे स्वयं श्रीराम रूप में अवतरित होंगे और अधर्म का विनाश कर धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। यही श्रीराम की दिव्य लीला की शुरुआत है।


श्रीराम का जन्म और बाल्यकाल



🔱 भगवान विष्णु का अवतरण – क्यों हुआ श्रीराम रूप में?

त्रेतायुग में रावण, जो कि एक महान तपस्वी और शिवभक्त था, ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर अमरत्व के समकक्ष हो गया था। वह देवताओं, ऋषियों और साधकों को आतंकित करता था।

पृथ्वी देवी ने गौ रूप में ब्रह्मा जी के पास जाकर सहायता माँगी। तब ब्रह्मा जी, सभी देवताओं सहित, क्षीरसागर पहुँचे और भगवान विष्णु से रावण के विनाश हेतु मार्ग माँगा।

भगवान विष्णु ने कहा —

“मैं अयोध्या के राजा दशरथ के यहाँ चार पुत्रों के रूप में जन्म लूँगा। मैं रावण का अंत करूँगा और धर्म की पुनः स्थापना करूँगा।”



भगवान विष्णु का अवतरण


 




👑 अयोध्या नगरी और राजा दशरथ का वंश

अयोध्या नगरी, कोशल राज्य की राजधानी, सूर्यवंशी वंश की गौरवशाली परंपरा को निभा रही थी। राजा दशरथ एक प्रजावत्सल, धर्मपरायण और बलशाली राजा थे, लेकिन उन्हें संतान प्राप्त नहीं थी।

एक दिन महामुनि वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करने का सुझाव दिया। ऋष्यश्रृंग मुनि के निर्देशन में यह यज्ञ संपन्न हुआ, और अग्निदेव ने एक दिव्य खीर राजा को दी, जिसे उन्होंने अपनी तीनों रानियों — कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी — को वितरित किया।



🌸 श्रीराम का जन्म और चारों भाइयों की कथा

यज्ञ के कुछ समय बाद ही राजा दशरथ के यहाँ चार पुत्रों का जन्म हुआ:

  • कौशल्या से श्रीराम

  • कैकेयी से भरत

  • सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न

जन्म होते ही अयोध्या में हर्ष और उल्लास छा गया। देवताओं ने स्वर्ग में मंगल गीत गाए, और ऋषियों ने घोषणा की —

“यह कोई साधारण बालक नहीं, स्वयं भगवान विष्णु का अवतार है।”

चारों भाई अत्यंत गुणवान, तेजस्वी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। विशेष रूप से लक्ष्मण, श्रीराम के प्रति पूर्ण समर्पित थे।


श्रीराम का जन्म और चारों भाइयों की कथा






🌿 बाल श्रीराम और महर्षि विश्वामित्र संग वनगमन

श्रीराम के बाल्यकाल में ही उनकी शिक्षा और नीति का आरंभ हुआ। गुरु वशिष्ठ के आश्रम में उन्होंने वेद, धनुर्विद्या, नीति और शास्त्रों का गहन अध्ययन किया।

एक दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या पधारे और राजा दशरथ से दो राक्षसों – ताड़का और सुबाहु – के वध हेतु श्रीराम को माँगा। दशरथ initially संकोच में थे, लेकिन वशिष्ठ की प्रेरणा से श्रीराम और लक्ष्मण, विश्वामित्र के साथ वन की ओर चल पड़े।



🌳 ताड़का वध

वन में श्रीराम ने सबसे पहले ताड़का नामक राक्षसी का वध किया, जिसने वर्षों से मुनियों को कष्ट दिया था। यह श्रीराम का पहला राक्षस वध था। विश्वामित्र ने उन्हें दिव्य अस्त्र प्रदान किए।



🌄 सिद्ध आश्रम की रक्षा

कुछ समय बाद, जब यज्ञ हो रहा था, तब सुबाहु और मारीच ने फिर से विघ्न डालने की कोशिश की। श्रीराम ने सुबाहु का वध किया और मारीच को दूर समुद्र में फेंक दिया।

यह घटनाएं दिखाती हैं कि श्रीराम मात्र बालक नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा हेतु अवतरित परम पुरुष थे।






🌺 निष्कर्ष – अवतरण की शुरुआत

श्रीराम का जन्म और बाल्यकाल ही उनके धर्म, मर्यादा, साहस और करुणा की नींव रखते हैं।

  • बाल्यकाल में ही उन्होंने अधर्म का विनाश आरंभ कर दिया था।

  • ताड़का वध और सिद्ध आश्रम की रक्षा के साथ ही एक धर्मयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी।

यह अवतार मात्र एक राजा की गाथा नहीं, बल्कि धर्म, नीति और मर्यादा की पुनः स्थापना का इतिहास है।



📚 अगले ब्लॉग में क्या है?

👉 पढ़िए अगला भाग:
“राम–सीता विवाह और 14 वर्षों का वनवास”
जहाँ मिलेगा आपको मिथिला नगरी का सौंदर्य, जनक और सीता की कथा, शिव धनुष प्रतियोगिता और कैकेयी के वरदान की रहस्यमयी भूमिका।






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